हिंदी कविता -‘मैं तूफानों में चलने का आदी हूँ’

 

मैं तूफानों में चलने का आदी हूँ,
तुम मत मेरी मंजिल आसान करो!

 

हैं फूल रोकते, काँटे मुझे चलाते,
मरुस्थल, पहाड़ चलने की चाह बढ़ाते,

 

सच कहता हूँ मुश्किलें न जब होती हैं,
मेरे पग तब चलने में भी शरमाते,

 

मेरे संग चलने लगें हवाएँ जिससे,
तुम पथ के कण-कण को तूफान करो।

 

मैं तूफानों में चलने का आदी हूँ
तुम मत मेरी मंजिल आसान करो!

 

अंगार अधर पर धर मैं मुस्काया हूँ,
मैं मरघट से जिन्दगी बुला लाया हूँ,

 

आँख-मिचौनी खेल चुका किस्मत से,
सौ बार मृत्यु के गाल चूम आया हूँ,

 

है नहीं मुझे स्वीकार दया अपनी भी,
तुम मत मुझ पर कोई एहसान करो।

 

मैं तूफानों में चलने का आदी हूँ
तुम मत मेरी मंजिल आसान करो!

 

श्रम के जल से ही राह सदा सिंचती है,
गति की मशीन आँधी में ही हँसती है,

 

शूलों से ही श्रृंगार पथिक का होता,
मंजिल की माँग लहू से ही सजती है,

 

पग में गति आती है छाले छिलने से,
तुम पग पग पर जलती चट्टान धरो।

 

मैं तूफानों में चलने का आदी हूँ
तुम मत मेरी मंजिल आसान करो!

 

फूलों से मग आसान नहीं होता है,
रुकने से पग गतिवान नहीं होता है,

 

अवरोध नहीं तो संभव नहीं प्रगति भी,
है नाश जहाँ निर्माण वहीं होता है,

 

मैं बसा सकूँ नव स्वर्ग धरा पर जिससे,
तुम मेरी हर बस्ती बीरान करो।

 

मैं तूफानों में चलने का आदी हूँ
तुम मत मेरी मंजिल आसान करो!

 

मैं पंथी तूफानों में राह बनाता,
मेरी दुनिया से केवल इतना नाता,

 

वह मुझे रोकती है अवरोध बिछाकर,
मैं ठोकर उसे लगाकर बढ़ता जाता,

 

मैं ठुकरा सकूँ तुम्हे भी हँसकर जिससे,
तुम मेरा मन-मानस पाषाण करो।

 

मैं तूफानों में चलने का आदी हूँ
तुम मत मेरी मंजिल आसान करो!
                              ∼हिंदी कविता : गोपाल दास ‘नीरज’