संत कबीर के दोहे ने सभी धर्मों, पंथों, वर्गों में प्रचलित कुरीतियों पर उन्होंने मर्मस्पर्शी प्रहार किया है। इसके साथ ही कबीर दास जी ने धर्म के वास्तविक स्वरुप को भी उजागर किया हैं। हिन्दी साहित्य में उनके योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता, कबीर के दोहे और उनकी रचनाएं बहुत प्रसिद्ध हैं।
आपको बता दें कि महान संत कबीर दास जी अनपढ़ थे लेकिन कबीर ने पूरी दुनिया को अपने जीवन के अनुभव से वो ज्ञान दिया जिस पर अगर कोई मनुष्य अमल कर ले तो इंसान का जीवन बदल सकता है। कबीर जी के दोहे को पढ़कर इंसान में सकारात्मकता आती है और प्रेरणात्मक विचार उत्पन्न होते हैं। आइए जानते हैं कबीर दास जी के दोहों–Kabir Ke Dohe के बारे में –
संत कबीर के दोहे हिंदी अर्थ सहित – Kabir Ke Dohe in Hindi with meaning

कबीर के दोहे- जाति न पूछो साधु की

 

जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिये ज्ञान,
मोल करो तरवार का, पड़ा रहन दो म्यान।

 

भावार्थ –
सज्जन की जाति न पूछ कर उसके ज्ञान को समझना चाहिए। तलवार का मूल्य होता है न कि उसकी मयान का – उसे ढकने वाले खोल का।

 

Jati na puchoo sadhu ki puchh lijio gyan,

Mol karo talwar ka pada rahan do myaan.

कबीर के दोहे-पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ,

 

पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ,पंडित भया न कोय,
ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।

भावार्थ – 

 बड़ी बड़ी पुस्तकें पढ़ कर संसार में कितने ही लोग मृत्यु के द्वार पहुँच गए, पर सभी विद्वान न हो सके। कबीर मानते हैं कि यदि कोई प्रेम या प्यार के केवल ढाई अक्षर ही अच्छी तरह पढ़ ले, अर्थात प्यार का वास्तविक रूप पहचान ले तो वही सच्चा ज्ञानी होगा।

 

 

Pothi Pad Pad Jag Mua, Pandit bhaya Na Koy,

Dhai Aakhar Prem Ka, Pade So Pandit Hoye. 

Bhawarth –

Badi Badi Pustake Pad ke Sansar me kitne hi log mrityu ke dwar pahuch gaye,par sabhi vidwan na ho sake.Kabir mante he ki yadi koi prem ya pyar ke keval dhai akshar hi achi tarah pad le,arthat pyar ka vastvik roop hi pahchan le to vahi sachcha gyani hoga.

 

 

कबीर के दोहे-जिन खोजा तिन पाइया

 

जिन खोजा तिन पाइया, गहरे पानी पैठ,
मैं बपुरा बूडन डरा, रहा किनारे बैठ।

 

भावार्थ – 

जीवन में जो लोग हमेशा प्रयास करते हैं वे कुछ न कुछ वैसे ही पा लेते हैं जैसे कोई गोताखोर गहरे पानी में जाता है तो कुछ न कुछ पा ही लेता हैं। लेकिन कुछ लोग गहरे पानी में डूबने के डर से यानी असफल होने के डर से कुछ करते ही नहीं और किनारे पर ही बैठे रह जाते हैं।

 

 

 

Jin Khoja Tin Paaiyan Gahre Pani Paith,

Mai Bapura Boodan Dara Raha Kinare Baith.

 

Bhawarth-

Jeewan me jo log hamesha praas karte hain, we khuchh na kuchh wese hi paa lete hain jese koi gota khor gahre pani me jata hai to kuchh naa kuchh paa hi leta hai, Lekin kuchh log gahre pani me doobne ke dar se yani asfal hone ke dar se kuchh karte nahi aur kinare par baithe rah jate hai.

 

कबीर के दोहे

 

पानी केरा बुदबुदा, अस मानुस की जात।
एक दिना छिप जाएगा,ज्यों तारा परभात।

 

भावार्थ –

कबीर का कथन है कि जैसे पानी केबुलबुले,   इसी  प्रकार मनुष्य का शरीर क्षणभंगुर है। जैसे  प्रभात  होते  ही  तारे  छिप जाते हैं,  वैसे  ही  ये  देह  भी  एक दिन नष्ट हो जाएगी।

 

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Paani Kera Budbuda, Ass Manus ki Jaat.

Ek Dina Chhip Jayega, Jyo Tara Parbhat.

 

Bhavarth-

Kabir ji ka kathan hai ki jaise pani ke bulbule, Isi prakar manushya ka sharir kshanbhangur hai. Jaise prabhat hote hi taare chhup jate hain, Vaise hi ye Deh  bhi ek din nasht ho jayegi.